Jan 28, 2014

हमारे चाँद पे, दाग़ है खून के*


हमारे चाँद पे, दाग़ है खून के
ये फ़साने नहीं, किस्से है ज़िन्दगी के.....

तब तो साथ थे आँगन हमारे,
हम जीते थे एक दूसरे के सहारे ।
छूट गए वो किनारे, खींच ली लकीरें,
अब रोज़ तडपाते है मौत के इशारे ।

हमारे चाँद पे खून के दाग़ है,
सुन सको तो माँ की लोरी में चीक है ।
मत पूछो हमसे कब से ये दाग़ है?
डरते है हम, कही दिलों में अब भी आग है...

*The title of the poem and the thoughts in it are inspired from Rahul Pandita's brilliant book "Our Moon has blood clots: The Exodus of the Kashmiri Pandits"

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