ये इंतज़ार के लम्हे जाने कब ख़तम होंगे ?
क्या पता अशआर के मानी कब क्या होंगे ?
कभी इन लफ़्ज़ों में मुझे तुम दिखते हो
काश कभी इनमें तुझे मै भी दिख जाऊं ।
ना हो ऐसे, लेकिन अगर वक़्त के सितम में
तुझ तक ना पहुँच पाए पैगाम मेरे दोस्ती के
हे दोस्त मेरे, इन्ही अलफ़ाज़ो में तुम सुन लेना
मेरे वो सारे अनकही बातें जो अनसुने रहगये।
क्या पता अशआर के मानी कब क्या होंगे ?
कभी इन लफ़्ज़ों में मुझे तुम दिखते हो
काश कभी इनमें तुझे मै भी दिख जाऊं ।
ना हो ऐसे, लेकिन अगर वक़्त के सितम में
तुझ तक ना पहुँच पाए पैगाम मेरे दोस्ती के
हे दोस्त मेरे, इन्ही अलफ़ाज़ो में तुम सुन लेना
मेरे वो सारे अनकही बातें जो अनसुने रहगये।
(These moments of wait, who knows when will they end?
Who knows when these verses will acquire what meanings?
Sometimes in these phrases, I happen to see thou,
Wish sometimes in these, I too am visible to thou.
Hope it doesn't happen so, but if in the tyranny of time
Is not delivered to thou my message of friendship;
O friend of mine, in these very words do thou listen
All my untold thoughts, which have remained unheard.)
Sometimes in these phrases, I happen to see thou,
Wish sometimes in these, I too am visible to thou.
Hope it doesn't happen so, but if in the tyranny of time
Is not delivered to thou my message of friendship;
O friend of mine, in these very words do thou listen
All my untold thoughts, which have remained unheard.)
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