Mar 14, 2012

पिया तो से मन लागे रे

पिया तो से मन लागे रे
जहाँ भी जाहूँ तेरे याद आये रे।

तू जैसे बहती हवा
न जानू खुदा के घर का पता।
तू जैसे उडती फिज़ा
न जानू मुझको क्यूँ ऐसी सज़ा।
तू जैसे दिखती समा
न जानू कैसी अंधे थे हम वहाँ।

पिया तो से मन लागे रे
तेरे लिए मेरी नज़रे तरसाये रे। 

कब क्या करे
तेरे यादो में ना जाने रे।
अब यूँ डरे
तेरे बातो में दिल तामे रे।
जब सर फिरे
तेरे राहो में गुमराह जाये रे।

पिया तो से मन लागे रे
बिन तेरे कैसे जिया जाये रे?

कहना भी चाहूँ
दिल की हाजारों आरजु तुझसे यूँ।
मनाना भी चाहूँ
जो मुझसे रूट गए हो तुम।
मरना भी चाहूँ
खुदा के महफिल सजाने मै भी आहूँ?

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