इस चाहत के पन्ने जब नाजुक से हिलते है,
तो मैं किस हवा को इसका कसूर दूँ?
इन पन्नों पे जब दिल कि आरज़ू बयान होता है,
तो मैं किस शायर को इसका कसूर दूँ?
इन बातें जब प्यार का वो पैगाम पहुँचाते है,
तो मैं किस परिंदों को इसका कसूर दूँ?
इस पैगाम को जब मेरे चाहत टुकरा देता है,
तो मैं किस दीवानगी को इसका कसूर दूँ?
इस टुकराये दाग़-ए-दिल जब हँसता है,
तो मैं इस बेवजह इश्क को कैसे कसूर दूँ?
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